हर भाषा का सम्मान करो पर हिंदी से प्यार करो

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BN बांसवाड़ा न्यूज़ से – अंग्रेज़ी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषाज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।

भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की उपर्युक्त पंक्तियां इस बात को स्पष्ट करती हैं की हम चाहे कितनी भी अंग्रेजी पढ़ लें, कितनी ही तरह के गुणों में प्रवीण हो जाएं, लेकिन जब तक हमें अपनी मातृभाषा का ज्ञान नहीं होगा हम छोटे के छोटे ही रहेंगे हम कभी उन्नति नहीं कर सकते। यद्यपि अंग्रेजी अथवा अन्य किसी भाषा का ज्ञान होना अच्छी बात है लेकिन यदि हमें अपनी भाषा का ज्ञान नहीं है तो सब कुछ व्यर्थ है। हमें सभी भाषाओं का सम्मान करना चाहिए परंतु हिंदी की अवहेलना कदापि नहीं करना चाहिए।

क्या है हिंदी?

हिन्दी या हिंदी जिसके मानकीकृत रूप को मानक हिंदी कहा जाता है, विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की एक राजभाषा है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्दों का प्रयोग अधिक है और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। एथनोलॉग के अनुसार हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है।

हिंदी दिवस और विश्व हिंदी दिवस के अंतर

हिंदी दिवस और विश्व हिंदी दिवस दोनों दिनों को लेकर लोगों को असमंजस की स्थिति बनी रहती है आपको बता दें 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस होता है और 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। दोनों का उद्देश्य हिंदी का प्रचार प्रसार ही है। हालांकि विश्व हिंदी दिवस और राष्ट्रीय हिंदी दिवस की शुरुआत को लेकर अंतर है। राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाने की शुरुआत इसलिए हुई क्योंकि भारत में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला था। वहीं विश्व हिंदी दिवस को इसलिए मनाया जाता है ताकि विश्व में भी हिंदी को वही दर्जा मिले।

जहां एक और 14 सितंबर 1946 को संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया। देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने 14 सितंबर को हिंदी दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा संसद में की। हालांकि पहली बार आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था। तो वहीं दूसरी ओर 10 जनवरी का दिन विश्व हिन्दी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए 2006 में प्रति वर्ष 10 जनवरी को हिन्दी दिवस मनाने की घोषणा की थी। हिंदी को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए 10 जनवरी 1975 से ‘विश्व हिंदी सम्मेलन’ का आयोजन शुरू किया गया। पहले विश्व हिंदी सम्मेलन की वर्षगांठ को चिह्नित करने के लिए प्रतिवर्ष 10 जनवरी को हिंदी दिवस मनाया जाता है।

वर्तमान परिदृश्य में अंग्रेजी बाजार में पिछड़ती हिंदी

आजकल अंग्रेजी बाजार के चलते दुनिया भर में हिंदी जाने और बोलने वालों को अनपढ़, गवार और देहाती के रूप में देखा जाता है या यह कह सकते हैं के हिंदी बोलने वाले लोग तुच्छ नजरिए से देखें जाते हैं य़ह कतई सही नहीं है हम हमारे यह देश में अंग्रेजी के गुलाम बन बैठे हैं और हम ही अपनी हिंदी भाषा को वह मान सम्मान नहीं दे पा रहे हैं जो देश की भाषा के प्रति हर देशवासियों के नजर में होना चाहिए। हम या आप जब किसी बड़े होटल या बिजनेस क्लास के लोगों के बीच खड़े होकर गर्व से अपनी मातृभाषा का प्रयोग कर रहे होते हैं तो उनके दिमाग में आप की छवि एक गवार की बनती है। घर पर बच्चा अतिथियों को अंग्रेजी में कविता आदि सुना दे तो माता-पिता गर्व महसूस करने लगते हैं इन कारणों से लोग हिंदी बोलने से घबराते हैं। आज हर माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में प्रवेश दिलाते हैं इन स्कूलों में विदेशी भाषाओं पर तो बहुत ध्यान दिया जाता है लेकिन हिंदी की तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया जाता है। लोगों लगता है कि रोजगार के लिए उसमें कोई खास अवसर नहीं मिलते कोई भी व्यक्ति अगर हिंदी के अलावा अन्य भाषा में पारंगत है तो उसे दुनिया में ज्यादा ऊंचाई पर चढ़ने के अवसर नजर आने लगते हैं चाहे वह कोई भी विदेशी भाषा हो। आजकल लोग अंग्रेजी भाषा का ज्ञान अर्जित करना अपनी शान समझते हैं और हिंदी को शान के खिलाफ मेरा मानना है कि वर्तमान में विभिन्न प्रतियोगिताओं, प्रतिस्पर्धाओं या अन्य कार्यों में अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम अपनी ही राजभाषा की अवहेलना अंग्रेजी के समक्ष करें।

बदलनी होगी धारणा करने होंगे प्रयास

इसमें कोई दो राय नहीं है की अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अंग्रेजी एक ऐसा माध्यम है जिसका विश्व स्तर पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। यही वजह है कि हम लोगों को अंग्रेजी सीखनी पड़ती है, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि हम अपनी राजभाषा को बोलने या सीखने में संकोच करें। अगर हम ऐसा करेंगे तो हिंदी विलुप्त होने की कगार पर पहुंच जाएगी। आज विश्व में ऐसे देश भी है जो अपने देश में केवल अपनी भाषा में ही काम को महत्व देते हैं। रूस, चीन, जापान ऐसे प्रमुख उदाहरण हैं जिन्होंने अपने देश में अपनी ही भाषा में काम को महत्व दिया जाता है और यह वजह है कि इनकी भाषा लगातार फल-फूल रही है। क्या ऐसा हमारे देश में होना संभव नहीं? निश्चित रूप से ऐसा संभव है, लेकिन उसके लिए हम सबको मिलकर प्रयास करना होगा। आज अंग्रेजी विश्व की भाषा इसलिए बन पाई क्योंकि अंग्रेजों ने अंग्रेजी को हमेशा सम्मान दिया और इसे बढ़ाने की कोशिश की। वह जहां कहीं भी गए उन्हें केवल अंग्रेजी में ही काम और संवाद को महत्ता दी। जिस देश को भी अंग्रेजों ने उपनिवेश बनाया वहां वह अपनी संस्कृति और सभ्यता के निशान छोड़ते गए और देखते ही देखते उनकी सभ्यता और संस्कृति को पूरे विश्न ने अपना लिया। ऐसा हमारी हिंदी के लिए भी करना होगा लेकिन इसके लिए हमें लगातार प्रयास करते रहने होंगे। तभी हिंदी को विश्व पटल पर आगे ले जाया जा सकता है। हमें ऐसे कानून बनाने होंगे कि कार्यालयों और स्कूल, कॉलेजों में हिंदी में संवाद और लिखित कार्य को अनिवार्य बना दिया जाए। तभी हिंदी के अस्तित्व को बचाया जा सकता है।

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