कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं दिला पाई थी राजस्थान में अशोक गहलोत की ताकत

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BN बासंवाड़ा न्यूज़ – राजस्थान में सत्तारूढ़ दल में सियासी अस्थिरता के बीच पार्टी हाईकमान के बेहद करीबी माने जा रहे अशोक गहलोत की खुद की ‘ताकत’ पर ही सवाल उठने लगे हैं। कल तक ऐसा माना जा रहा था कि वे हाईकमान की इच्छा के तहत पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए स्वेच्छा से सीएम का पद छोड़ देंगे, लेकिन वे अपने बयानों और गतिविधियों से बार-बार यह जताते रहे हैं कि वे राज्य सरकार के मुखिया का पद छोड़ने के इच्छुक नहीं है। इतना ही नहीं, आरोप यह भी लगाए जा रहे हैं कि राजस्थान में सचिन पायलट को सीएम बनने से रोकने के लिए उन्होंने ही अपने वफादारों से विरोध जताने और विद्रोही रुख अपनाने को प्रेरित किया था।

यह स्पष्ट हो जाने के बाद कि “एक व्यक्ति – एक पद” सिद्धांत के लिए अशोक गहलोत को पार्टी अध्यक्ष बनने से पहले राजस्थान में मुख्यमंत्री पद छोड़ने की आवश्यकता होगी, ऐसा लगता है कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए उन्होंने अपने ही वफादारों द्वारा विद्रोह किया था। हालांकि वे इससे इंकार करते हैं कि उन्होंने किसी तरह से बगावत को हवा दी है।मौजूदा सीएम अशोक गहलोत इशारों-इशारों में कई बार यह जता चुके हैं कि राजस्थान में उनकी वजह से ही कांग्रेस सरकार है। वहां पर निर्वाचित विधायकों में से अधिकतर उनके पक्ष में हैं। केवल पार्टी के विधायक ही नहीं, बल्कि सभी 13 निर्दलीय विधायक भी उनके ही समर्थक हैं। वे पार्टी के प्रति जितने वफादार हैं, उससे कहीं ज्यादा वे उनके प्रति वफादार हैं। हालांकि उनकी राजनीतिक ‘ताकत’ का पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य में पार्टी को कोई फायदा नहीं मिल सका। कुछ महीने पहले ही विधानसभा चुनाव जीतने के बावजूद, गहलोत 2019 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान से पार्टी को एक भी सीट नहीं दिला सके। खुद अपने गृह जिले जोधपुर में अपने बेटे तक को नहीं जिता सके।राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर पार्टी के लिए कितना भला कर पाएंगे?
ऐसे में तो यह सवाल उठेंगे ही कि जिस नेता की ताकत अपने प्रदेश में एक भी लोकसभा सीट जिताने की नहीं है, वह राष्ट्रीय स्तर पर मुखिया बनकर पार्टी का कितना भला कर पाएगा। सवाल यह भी उठेगा कि राज्य में अशोक गहलोत ही सीएम पद के एकमात्र दावेदार क्यों रहें, सचिन पायलट को राज्य सरकार का प्रधान क्यों नहीं बनाया जाना चाहिए।अशोक गहलोत की ऐसी जिद क्यों है कि वे राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद भी पार्टी के ‘एक व्यक्ति एक पद’ के सिद्धांत को नहीं स्वीकारना चाहते हैं और अध्यक्ष के साथ-साथ सीएम का पद भी खुद संभाले रखना चाहते हैं। फिर तो पार्टी के लिए अशोक गहलोत ही मजबूरी नहीं हैं, अध्यक्ष पद के लिए पार्टी में कई और वरिष्ठ तथा सक्षम राजनेता मौजूद हैं।

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