BN बांसवाड़ा न्यूज़ से – जालौर की घटना के चर्चा में आते ही तुरंत मटकी को हटा दिया गया!अध्यापकों पर दबाव बनाकर एक सुर में बुलवाया गया कि मटकी थी ही नहीं! स्कूल के सारे बच्चों को रटाया गया कि तुम्हे बस यही बोलना है कि स्कूल में मटकी नहीं थी और सब एक ही टंकी से पानी पीते थे! एक सामाजिक ग्रुप लगातार छुआछूत की घटना को डाइवर्ट करने के लिए अफवाहों का सहारा लेता रहा! जांच के नाम पर पुलिस व प्रशासन कहता रहा कि मटकी वाली घटना अभी तक सामने नहीं आई और जांच जारी है! इस बीच नीचे नल को लेकर आलोचना हुई तो रातोंरात टंकी में एक थोड़ा ऊपर नया नल लगा दिया गया! जहां मटकी रखी हुई थी वहां से मटकी तो हट गई लेकिन हरित शैवाल(लील)हटाना भूल गए।पत्थरों पर से लील हटाना मुश्किल जरूर है लेकिन नामुमकिन नहीं।लेकिन सच को दबाने में कई बार गलतियां हो जाती है! छुआछूत हर जगह मौजूद है और उसको एकदम मिटाया भी नहीं जा सकता क्योंकि हर जातिय समूह दूसरे जातिय समूह के साथ विभिन्न आयामों में भेदभाव करता है। इसे मिटाने के लिए शिक्षा के साथ-साथ जागरूकता जरूरी है।यह कोई एकदिवसीय कार्यक्रम से समाधान का मुद्दा नहीं है।समाज सुधार एक सतत प्रक्रिया है और धीरे-धीरे परिवर्तन आते है। जब हम समस्या के होने से ही इनकार कर देते है उसका मतलब हम भविष्य में सुधार की गुंजाइश ही खत्म कर देते है।स्वीकार्यता पहली शर्त है। सत्य को छुपाने की कोशिश की जाती है तो भी सत्य अपने रास्ते पर पदचाप के चिन्ह छोड़ता जाता है।