BN बांसवाड़ा न्यूज़ – 64 वर्षीय एस.हरीश एक ऐसे मिशन पर हैं, जिसके बारे में वार्ड अधिकारी और अनेक कॉलोनी बिल्डर्स सोच भी नहीं सकते थे। आज पूरा देश बारिश की गिरफ्त में है और हममें से अधिकतर लोग लीकेज आदि ऐसी समस्याओं की जांच कर रहे होंगे, जिन्हें हमने अभी तक ठीक नहीं किया था।
लेकिन बेंगलुरू के रहने वाले हरीश मानसून के आगमन के बाद अपने रहवासी वार्ड में 10 हजार पौधे रोपने के मिशन में जुट गए हैं। उन्होंने ‘मानागे ओंडु मारा’ (हर घर में एक पेड़) नामक अभियान को लॉन्च किया है। इसके तहत वे कर्नाटक वन विभाग से पौधे प्राप्त करते हैं और आस-पड़ोस के इलाकों में साप्ताहिक पौधारोपण कार्यक्रम चलाते हैं। जून खत्म होते-होते हरीश ने सफलतापूर्वक 700 से अधिक विकसित पौधों को विभिन्न क्षेत्रों में रोप दिया था।
उन्होंने छह माह पूर्व ही इस परियोजना की शुरुआत कर दी थी, क्योंकि वे जानते थे कि बारिश में अभियान गति पकड़ेगा और लोगों को तुरंत ही इसके लिए राजी करना कठिन होगा। उनका प्राथमिक लक्ष्य अपने वार्ड में हरित-परिवर्तन लाना है। मुझे हरीश की याद तब आई, जब मैंने इस अखबार के 1 जुलाई को प्रकाशित विशेष संस्करण ‘एक पेड़ एक जिंदगी’ को देखा, जिसमें तुलसी के बीज समाहित थे।
अखबार ने पाठकों से अनुरोध किया कि वे अपने आसपास के क्षेत्रों को अधिक से अधिक हराभरा बनाने में सहयोग करें। हरीश की याद आने का एक और कारण था, अलबत्ता वह थोड़ा नकारात्मक था। इसका सम्बंध फुटपाथ पर चलने से था। क्या आपने कभी सोचा कि सड़क की तुलना में फुटपाथ इतने जर्जर क्यों होते हैं? इसका कारण है दोपहिया वाहनों की बढ़ती बिक्री।
अब मोटरसाइकिल-चालक छोटी दूरियां तय करने के लिए फुटपाथ का उपयोग करने लगे हैं, खासतौर पर सिगनलों के निकट। कम से कम बेंगलुरु और मुम्बई तक का मेरा अनुभव तो यही कहता है। आईआरसी मानकों के मुताबिक 1.8 मीटर की न्यूनतम चौड़ाई वाले फुटपाथों का निर्माण एक घंटे में 2,750 पैदलयात्रियों को समायोजित करने के लिए किया जाता है।
लेकिन इन फुटपाथों पर पैदलयात्रियों के बजाय दोपहिया वाहन चालक यात्रा करने लगे हैं, क्योंकि इनमें से अधिकतर के प्रवेश और निर्गम पर पिलर नहीं लगे होते हैं। वास्तव में, हर शहर के नगरीय निकाय फुटपाथों के बजाय सड़कों का ज्यादा ख्याल रखते हैं। शायद इसीलिए कुछ दुकानदार अपनी दुकानों के सामने मौजूद फुटपाथ की जगह सुरक्षित करने के लिए वहां बहुत बड़े फूलदान रखने लगे हैं, जिन्हें चुराया नहीं जा सकता।
हालांकि फुटपाथ की बड़ी जगह घेरना भी गैरकानूनी है, लेकिन वो कम से कम ऐसा करके दोपहिया वाहन चालकों को तो फुटपाथ पर आने से रोकते हैं। पता नहीं आपने गौर किया होगा या नहीं, लेकिन उनकी ग्रोथ घर के पौधों की तुलना में अधिक होती है। एक शोध के मुताबिक पौधे वायुमंडल में कार्बन डायऑक्साइड (सीओटू) के बढ़ते स्तर पर प्रतिक्रिया करते हैं।
वैज्ञानिक प्रमाणों के मुताबिक जब पौधे बड़े होते हैं तो वो अधिक सीओटू ग्रहण करते हैं और उसे अपने बायोमास- जिसमें टहनी, पत्तियां, मिट्टी आदि शामिल हैं- में संकलित कर देते हैं। जब यह चक्र लम्बे समय तक चलता है तो इससे जीवाश्म ईंधन बन सकता है। अगर यह सच है तो वो दुकानदार एक नेक काम ही कर रहे हैं।
फंडा यह है कि पौधे ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के तरीके विकसित कर रहे हैं, क्योंकि उनमें जलवायु-परिवर्तनों पर प्रतिक्रिया करने की अंतर्निहित गुणवत्ता होती है। लेकिन इसके लिए हमें उन्हें यथावत रहने देना चाहिए।